लॉकडाउन से पहले नए केस की एवरेज ग्रोथ रेट 35% थी, बाद में घटकर 15% पहुंची; इस दौरान रोज औसतन 58 मरीज भी ठीक हुए

चीन के वुहान शहर से निकला कोरोनावायरस दुनिया के लिए सिरदर्द बन चुका है। फिलहाल, कोरोना का कोई असरदार इलाज या वैक्सीन नहीं है। इसलिए, दुनियाभर की सरकारें इसे रोकने के लिए एक ही तरीका अपना रही हैं और वो तरीका है- लॉकडाउन। 



भारत में भी कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया है। पहले लॉकडाउन 21 दिन के लिए लगाया गया था, लेकिन बाद में इसे 19 दिन और बढ़ा दिया गया। लॉकडाउन का पहला फेज 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच लागू रहा और दूसरा फेज 15 अप्रैल से 3 मई तक रहेगा। 



लॉकडाउन बढ़ाने के पीछे यही तर्क था कि देश में कोरोना के मामले कम होने के बजाय बढ़ते ही रहे। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने 12 अप्रैल को प्रेस कॉन्फ्रेंस को बताया था, दुनिया में कोरोना 41% की ग्रोथ रेट से फैल रहा था। अगर सरकार की तरफ से शुरुआत में कोई एक्शन नहीं लिया जाता, तो इसी ग्रोथ रेट के हिसाब से 15 अप्रैल तक 8.2 लाख लोगों के संक्रमित होने की आशंका थी।



लॉकडाउन से पहले क्या थी हमारी हालत?
देश में लॉकडाउन उस समय लगाया गया, जब कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या अचानक बढ़ने लगी थी। देश में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को आया था। उसके बाद 2 फरवरी तक 3 मामले थे। लेकिन, फिर पूरे महीनेभर कोई नया मामला नहीं आया। ये तीनों मरीज भी ठीक हो चुके थे। उसके बाद 2 मार्च से देश में कोरोना के मामले अचानक बढ़ने लगे। 



22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया। और 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया। लॉकडाउन से एक दिन पहले तक यानी 24 मार्च तक देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 571 थी। तब तक 10 मौतें भी हो चुकी थीं। लॉकडाउन से पहले तक देश में कोरोना के मामले दिखने में भले ही कम लग रहे हों, लेकिन इनकी एवरेज ग्रोथ रेट 35% के आसपास थी। यानी, हर दिन कोरोना के 35% नए मरीज मिल रहे थे। 



लॉकडाउन के पहले फेज में क्या सुधार हुआ?
लॉकडाउन लगने के बाद भी 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच देशभर में कोरोना के 10 हजार 919 नए मामले बढ़े। यानी, 14 अप्रैल तक देश में कोरोना के जितने मामले आए, उसमें से 95% मामले लॉकडाउन में आए। 



लेकिन, राहत की एक बात ये भी रही कि लॉकडाउन के दौरान कोरोना के नए मामलों की एवरेज ग्रोथ रेट में कमी आई। लॉकडाउन से पहले कोरोना की एवरेज ग्रोथ रेट 35% थी, जो लॉकडाउन में घटकर 15% रह गई। 



इसको ऐसे समझिए : लॉकडाउन से पहले कोरोना की ग्रोथ रेट 35% थी। यानी, सोमवार को अगर कोरोना के 100 मरीज हैं, तो मंगलवार को मरीजों की संख्या 135 हो जा रही थी। लेकिन, लॉकडाउन में ग्रोथ रेट 15% हो गई। इसका मतलब हुआ कि, पहले मंगलवार को कोरोना संक्रमितों की संख्या 100 से 135 हो रही थी तो अब ये 100 से 115 ही बढ़ सकी। 




राहत की एक बात ये भी, लॉकडाउन में हर दिन औसतन 58 मरीज ठीक हुए
लॉकडाउन के पहले फेज में राहत की एक और बात रही और वो ये कि इस दौरान कोरोना के संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी। 24 मार्च तक देश में 40 मरीज ही ठीक हुए थे। लेकिन 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच 1 हजार 325 मरीज ठीक हुए। अगर इसका औसत निकालें तो हर दिन 58 मरीज कोरोना से ठीक हुए। 



लेकिन, लॉकडाउन के 21 दिन में 384 मौतें हुईं, हर दिन औसतन 18 मौतें
24 मार्च तक देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या 10 ही थी। लेकिन, 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच इन 21 दिनों में 384 लोगों की जान कोरोना से गई। यानी, हर दिन औसतन 18 मौतें। जबकि, लॉकडाउन से पहले तक औसतन हर 5.5 दिन में एक मौत हो रही थी। 


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